Sunday, June 6, 2010

अबे रुक जा रे
बहुत तेज चलने लगे हो
जरा धीरे चल
आगे दलदल है
गिरेगा तो कीचड़ लगेगा.
सोच से तो है ही
शक्ल से भी लीचड़ लगेगा.
'साले' पलटकर बोला..
"मैं चल रहा हूँ
तू जल रहा है.
तुझे लग रहा है मैं नशे में हूँ.
नही हूँ मैं.
तू जहां तक सोचता है
वही तेरी हद है.
मैं दुनिया की सोचता हूँ,
तुम मुनिया के बारे में भी नही सोच पाए.
पता नही किस हाल में है.
मेरा रास्ता मत रोक
तुम देखना
अगर मेरे बदन पर कीचड़ भी लगेगी
तो ताली बजेगी.
और तुम यूँ ही तमाशा देखना."
सच है
तमाशा तो रोज ही देखता हूँ
आज क्या नया देखूंगा.
चल फिर भी,शायद ऐसे ही दुनिया बदल जाए.
कुछ तो अच्छा हो.
लेकिन कीचड़ से तो चेहरा ढक जाता होगा..
धुलकर फिर रंगत पाता होगा ;
क्या असली हँसी अब तक बची है???

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