रोटियाँ सेंकने को बैठे रह गए
चूल्हा है कि जला ही नही
अब क्या खायेंगे?
कमबख्तों ने लकड़ियाँ भी नहीं दी
अब आग कैसे जलाएंगे?
नही जलेगी आग,तब
मुर्गे कैसे भुने जायेंगे?
मुर्गों की तो छोड़ ही दो
कम से कम रोटियाँ तो पकने देते.
पिछली आग में सिंकी रोटियाँ
अब तक तो भूख मिटाती रही,
लेकिन अब भूख कैसे मिटायेंगे?
लकडियाँ कौन देगा ?
आग कैसे जलाएंगे ?
और अगर आग ना जली तो
फिर रोटी किधर पकाएंगे?
दोस्त,आग नहीं जली तो
हमारे खाने के लाले पड़ जायेंगे,
फिर कैसे लोगों की चेतना जगायेंगे?
मामला गंभीर है,सोचना पड़ेगा
ऐसे में एक उपाय दीखता है;
चलो खुद आग लगाते हैं
बुझे हुए चूल्हे को फिर से जलाते हैं
फिर अपनी रोटी खुद पकाएंगे
और मजे ले लेकर खायेंगे.
लेकिन प्रश्न यही रहा कि
लकड़ियाँ कहाँ से लायेंगे?
चलो इस बार पड़ोसी से ही मांग लें
वैसे भी उनके पास ढेर सारी लकड़ियाँ हैं
जिनसे वो डंडे भी बनाते हैं.
औरों को भी हड़काते हैं,
और अपनी रोटी आराम से खाते हैं.
जैसे भी हो चूल्हा जले
वरना भूख कैसे मिटायेंगे?
ऐसे कब तक भूख से बिलबिलायेंगे?
जो भी होता,चूल्हा जलता
तभी तो हमारी भूख मिटती.
और अगर चूल्हा नहीं जला
तो सबके घर झुलसा देंगे.
भला यह भी कोई बात हुई?
this blog contains a few aspects of my poetry.poetry helps me to stay calm in the worst of the situations
Saturday, October 2, 2010
Sunday, June 6, 2010
अबे रुक जा रे
बहुत तेज चलने लगे हो
जरा धीरे चल
आगे दलदल है
गिरेगा तो कीचड़ लगेगा.
सोच से तो है ही
शक्ल से भी लीचड़ लगेगा.
'साले' पलटकर बोला..
"मैं चल रहा हूँ
तू जल रहा है.
तुझे लग रहा है मैं नशे में हूँ.
नही हूँ मैं.
तू जहां तक सोचता है
वही तेरी हद है.
मैं दुनिया की सोचता हूँ,
तुम मुनिया के बारे में भी नही सोच पाए.
पता नही किस हाल में है.
मेरा रास्ता मत रोक
तुम देखना
अगर मेरे बदन पर कीचड़ भी लगेगी
तो ताली बजेगी.
और तुम यूँ ही तमाशा देखना."
सच है
तमाशा तो रोज ही देखता हूँ
आज क्या नया देखूंगा.
चल फिर भी,शायद ऐसे ही दुनिया बदल जाए.
कुछ तो अच्छा हो.
लेकिन कीचड़ से तो चेहरा ढक जाता होगा..
धुलकर फिर रंगत पाता होगा ;
क्या असली हँसी अब तक बची है???
बहुत तेज चलने लगे हो
जरा धीरे चल
आगे दलदल है
गिरेगा तो कीचड़ लगेगा.
सोच से तो है ही
शक्ल से भी लीचड़ लगेगा.
'साले' पलटकर बोला..
"मैं चल रहा हूँ
तू जल रहा है.
तुझे लग रहा है मैं नशे में हूँ.
नही हूँ मैं.
तू जहां तक सोचता है
वही तेरी हद है.
मैं दुनिया की सोचता हूँ,
तुम मुनिया के बारे में भी नही सोच पाए.
पता नही किस हाल में है.
मेरा रास्ता मत रोक
तुम देखना
अगर मेरे बदन पर कीचड़ भी लगेगी
तो ताली बजेगी.
और तुम यूँ ही तमाशा देखना."
सच है
तमाशा तो रोज ही देखता हूँ
आज क्या नया देखूंगा.
चल फिर भी,शायद ऐसे ही दुनिया बदल जाए.
कुछ तो अच्छा हो.
लेकिन कीचड़ से तो चेहरा ढक जाता होगा..
धुलकर फिर रंगत पाता होगा ;
क्या असली हँसी अब तक बची है???
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