Saturday, December 12, 2009

गाथा

लिख डालूँ एक नयी गाथा
वेद पुराण कुरान मिलाकर
रामायण का अंश भी ले लूं
सब धर्मो का क्षोभ मिटा दूं.
महाकलह से त्राण दिला दूं
काल के गाल न असमय कोई
जाये,उसको प्राण दिला दूं.
झुके नहीं जो रुके कभी न
ऐसा कुछ वरदान दिला दूं.
भाग्यविधाता को झुठलाकर
सबको अपना मान दिला दूं.
रची न जाये फिर महाभारत
ऐसा कुछ संधान दिला दूं.
घुट-घुट मरते लोकतंत्र में
थोड़ी सी भी जान दिला दूं
कलम मुझे दे ऐसी शक्ति
प्रजातंत्र से 'वंशवाद' का नाम मिटा दूं.

Wednesday, December 2, 2009

सच का सपना

ना जाने मैं क्यूँ सोचता हूँ.
एक अधूरा सपना
जो कभी पूरा ना हुआ.
कमबख्त जग जाओ,सपना सपना ही है
जागोगे तो चिल्लाओगे
सोते रहने में ही भलाई है,
सबके हाथ मलाई है .
तुझे क्यों चिढ हो रही है
मुझे खाते देखकर.
औकात हो तो तू भी खा...
वरना चुपचाप
आँख मूँद और सो जा.
सोया रह तो बेहतर है
लात मरने में आसानी होगी
लात ना खाओ तुम,तो
हमें खाने को मिलेगा क्या?
सलाह है कि
सपने भी औकात में ही देखो .
वरना हम सपनो में ताले भी जड़ देते हैं
वैसा ही,जैसा घोटालों पे जड़ते हैं.
सुधर जाओ,चुप रहो.
तुम पैसा जुटाकर कर देते हो,
हम उसे चर लेते हैं.
तुम मुहँ से खाते हो
हम हर तरह से खाते हैं.
पैर तो हमारे भी दो हैं ......
पर हम तुम्हारी तरह सोचते नही हैं.
सोच अभी ड्यूटी-फ्री है
पर पेटेंट करा लेना
सोच पे पाबंदी नही है,
क्यूंकि मेरा उससे कुछ नही जाता
तो या तो..जागो और चिल्लाओ
वरना दुम दबा के सो जाओ..
और अच्छा लगे तो
तुम भी खाओ.