Tuesday, November 3, 2009

क्यूँ

घर लौटना अच्छा होता है.
जब ये पता हो के
न मैं,न ही वो
उदास होंगे घर आते हुए.
रास्ते भर बगले झांकते..
सन्नाटे में सकपकाते.
एक मजबूरी की मुस्कान चिपकाये .
वरना अब तो
घर में छुप बैठना पड़ता है.
छत गिरने का नहीं...
साए के उठ जाने का डर है ..
रोटी तो हम कमा लेंगे...
पर बोटियों का क्या भरोसा.
जब तक खुद लड़ना नहीं जान पायेगी,
बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी?